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न्याय की पुकार

तड़पते हुए पुकारती रही
पर बेरहमों ने सुनी एक नहीं
हे ईश्वर, क्या नारी तन
है बस भोग का साधन
मानव रूप में कुछ दरिंदे
करते आहत तन संग अंतर्मन

क्या कभी नही सुनी जाएगी 
एक स्त्री की न्याय की पुकार
क्या हमेशा किया जायेगा 
नारी अस्मिता की लाश पर 
राजनीति का व्यापार

और समाज...
बनकर मूकदर्शक
देखता है तमाशा
बेटों को दिया जाता अगर
नारी सम्मान की शिक्षा,संस्कार
 सुरक्षित होती हर बेटी,
 न होता यह व्याभिचार
                                          प्रीति ताम्रकार
                                           जबलपुर(मप्र)
#लेखनी कविता
#लेखनी कविता प्रतियोगिता 


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3 Comments

Seema Priyadarshini sahay

05-Oct-2021 12:07 PM

Nice

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Gunjan Kamal

02-Oct-2021 07:37 AM

Very nice 👌

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Swati chourasia

02-Oct-2021 07:32 AM

Very nice

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